एक वेटनरी सर्जन एवं उद्यान वैज्ञानिक की ऐसी सेवाएं रही की आज भी किसान जपते हैं उनके नाम की माला।

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sashakat uttarakhand

वरिष्ठ पत्रकार गणेश दत्त पाण्डेय, लोहाघाट

करोड़ो रुपए खर्च होने के बाद भी नहीं बदली कृषि विज्ञान केंद्र की तस्वीर।

लोहाघाट। आज के समय में सरकार के वेतनभोगी लोगों को वेतन तो उनके कद – कांठी के हिसाब से मिलता ही है, चाहे वह काम करें या ना करें। लेकिन ईश्वर का कैसा विधान है कि कुछ लोग उसने ऐसे पैदा किए हैं जो सोचते हैं कि उन्हें जिस काम के लिए रखा गया है वहां ऐसा काम किया जाए जो दूसरों के लिए नजीर बन सके।

उदाहरण के लिए लोहाघाट के कृषि विज्ञान केंद्र की स्थापना एवं पशुपालन विभाग में वेटनरी सर्जन के रूप में एक दुबले पतले से डॉक्टर भरत चंद की लोहाघाट के पशु अस्पताल में नियुक्ति हुई। उन्हीं दिनों केविके में मोटी सैलरी लेने वाले वैज्ञानिक आते गए। तब यहां के किसानों की स्थिति ऐसी थी कि जैसे दीपक तले अंधेरा होता है। यहां तक की केंद्र के पास रहने वाले सुंई गांव के किसानों को भी इस केंद्र का तब तक कोई लाभ नहीं मिला था।

दूसरी तरफ डॉ भरत चंद रात दिन एक कर हर गोठ में उन्नत नस्ल की गाए बंधवाने में जुट गए। धीरे-धीरे यहां इतना दूध पैदा होने लगा कि स्वयं लैक्टोजेन मिल्क कंपनी को यहां अपना प्रतिनिधि भेजना पड़ा कि जहां ट्रैकों के हिसाब से उनका दूध बिकता था अब वहां की क्या स्थिति है ? यहां आने पर उसे वास्तविकता का पता चला। आज डॉ चंद के बदौलत ही न केवल पूरे उत्तराखंड में यहां सर्वाधिक दूध पैदा होता है बल्कि गोधन यहां की अर्थव्यवस्था का प्रमुख अंग बना है। दूसरी तरफ कृषि विज्ञान केंद्र के कार्यों की आज के पढ़े-लिखे किसान समीक्षा कर रहे हैं तो करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी किसानों को निराशा ही हाथ लगी है। इसका कारण शुरू से ही यहां पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय द्वारा यहां ऐसे वैज्ञानिकों व प्रभारी को भेजा गया है जो किसानों के नाम पर तो एस कर गए। यहां सूरत दिखाने को तो आते थे लेकिन अधिकांश समय उनका पंतनगर में ही परिवार के साथ बीतता चला आ रहा था। यही वजह है कि आज के हाईटेक किसानों का केविके से मोहभंग होता जा रहा है। किसान इस केंद्र को एसे संस्थान के अधीन देना चाहते हैं जो वास्तव में उनका भला कर सके।
केविके मैं जहां एक ओर यहां तैनात हुए कोई भी वैज्ञानिक यह दावा नहीं कर सकते हैं कि उन्होंने यह काम करके दिखाया ? इसके ठीक विपरीत आजमगढ़ के रहने वाले सब्जी वैज्ञानिक डॉ एके सिंह ने अकेले अपने दम पर न संडे देखा ना मंडे सब्जी उत्पादन की नई-नई तकनीक किसानों को बता कर आज यहां के किसान न केवल सम्मान से अपना जीवन बिता रहे हैं बल्कि किसानों ने पालीहाउस, पाली टंनल, मल्चिंग वर्टिकल फार्मिंग, टपक सिंचाई आदि के जरिए कम भूमि में अधिक उत्पादन की तकनीक सिखाने तथा किसानों व जिले के खेती से जुड़े विभागों के बीच संबंध स्थापित कर ऐसा काम कर गए हैं कि आज भी यहां के किसान डॉ सिंह व डॉ भरत चंद के नाम की माला जपते हैं। सही मायने में कहा जाए तो इन दोनों शख्सियत को जो लोगों का सम्मान मिला था उसे अन्य लोग प्राप्त करने के लिए तरसते रह गए।

डॉ भरत चंद

बॉक्स
पशुपालन विभाग से अपर निदेशक पद से रिटायर डॉ भरत चंद का कहना है कि मैंने इस भावना से कार्य किया कि जिन पशुपालकों की बदौलत उनका मान, सम्मान एवं प्रतिष्ठा मिली है, मैं उनके लिए क्या कर सकता हूं ? आज भी भले ही में खटीमा रहता हूं मेरा मन मुख्यमंत्री धामी की परिकल्पना के अनुसार चंपावत को पशुपालन के क्षेत्र में जिले को शीर्ष पंक्ति में लाने के लिए खानदानी ईमानदार जिलाधिकारी नवनीत पांडे के साथ कार्य करने के लिए मेरा मन धड़कता है। -डॉ भरत चंद

डॉ एके सिंह
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में कार्यरत प्रधान वैज्ञानिक डॉ ए के सिंह का कहना है कि चंपावत जिले के लिए आज भी अपनी सेवाएं देने के लिए तैयार हैं। यहां के किसान वैज्ञानिक सोच रखते हैं। उनके प्रति मेरा वही लगाव आज भी है। तमाम किसान मुझसे आज भी संवाद करते हैं, उनका निश्छल प्रेम ही मेरी पूंजी रहा है जो वर्षों बाद भी याद करते हैं। हम किसानों के लिए क्या करते हैं इसकी उनको सब जानकारी रहती है।

डॉ एके सिंह


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