पानी के मोल बिक रहा है चंपावत जिले में उच्च गुणवत्ता वाला दूध।
लोहाघाट। उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में सर्वाधिक दूध का उत्पादन करने वाले चम्पावत जिले के लोगों का दुधारू पशुपालन से अब मोह भंग होता जा रहा है। जबकि आज के समय में उत्तराखंड के पशुपालन मंत्री सौरभ बहुगुणा पशुपालन के क्षेत्र में ऐसे उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं कि यहां दूध का उत्पादन दोगुने से अधिक हो जाना चाहिए था। इसकी मुख्य वजह है पशुपालकों को दूध का उचित मूल्य न मिलना है। चारे से लेकर संतुलित पशु आहार के दामों में बेइंतहा इजाफा आने एवं पानी के मोल दूध की कीमत मिलने से दुग्ध उत्पादकों में इस और रुझान कम होता जा रहा है। उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर धामी का मॉडल जिला राज्य का ऐसा जिला है जहां अन्य जिलों की तुलना में उच्च गुणवत्ता का दूध सबसे कम कीमत में मिलता है। जिले में दूध का उत्पादन इतना अधिक है कि दुग्ध उत्पादकों को दुग्ध संघ को दूध देना उनकी मजबूरी है। पानी की बोतल बीस रुपए में बिक रही है तो यहां दुग्ध संघ गाय का दूध 26 से 30 रुपए प्रति लीटर खरीद कर इसी दूध को पचास रुपए लीटर बेच रहा है। इसका कारण दूध में एसएनएफ एवं फैट की कमी बताई जाती है जबकि दुग्ध संघ इसी दूध को पचास रुपए लीटर की दर से बेचता है। एसएनएफ बढ़ाने के लिए भी दुग्ध संघ कोई प्रयास नहीं कर रहा है।
चौंडला के शेर सिंह का कहना है कि दूध की उत्पादन लागत से कहीं कम कीमत मिलने से दुधारू पशुपालन ऐसा महंगा व्यवसाय हो गया है जिसमें उन्हें हर स्तर पर नुकसान झेलना पड़ रहा है। जबकि सरकार पशुपालन को बढ़ावा देने का अच्छा प्रयास कर रही है। जब तक दूध की अच्छी कीमत नहीं मिलेंगे तब तक यह कार्य आगे नहीं बढ़ सकता है।
दुग्ध उत्पादक निर्मला कहती है कि जब तक दुग्ध संघ उनसे पचास रुपए लीटर दूध नहीं खरीदता है तब तक गाय भैंस पालने का कोई लाभ नहीं है। महंगाई इतनी हो गई है कि जब पशुपालन विभाग कंपैक्ट फिड ब्लांक की सप्लाई तक नहीं कर पा रहा है। सरकार की जो योजनाएं चल रही है, मन करता है दो या तीन गाय और पाले परंतु कैसे ? दूध का सही मूल्य तो मिलता ही नहीं।
लोहाघाट के पशु चिकित्साधिकारी डॉ जेपी यादव का कहना है कि यहां पहले से ही समृद्ध पशुपालन रहा है। सरकार द्वारा दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए जो प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं, उससे यहां के लोग पूरा लाभ उठाना चाहते हैं। लेकिन दूध का उचित मूल्य न मिलने से उनके कदम आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। यहां के बराबर सस्ता व उच्च गुणवत्ता का दूध पूरे उत्तराखंड में नहीं मिलेगा। दूध का सही मूल्य मिलते ही हर गोठ में लोग गाय बांधने के लिए तैयार है।