सशक्त संवाद, उत्तराखंड।
शादी महज दो दिलों का नहीं, दो परिवारों का पवित्र बंधन होता है — लेकिन जब इस रिश्ते को दहेज की लालसा निगल जाए, तो केवल एक रिश्ता नहीं, कई सपने बिखर जाते हैं। ऐसा ही एक हृदय विदारक मामला उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले के मुख्यालय रुद्रपुर से सामने आया है, जहां एक प्रतिष्ठित कॉस्मेटिक्स व्यवसायी परिवार ने केवल इस कारण से रिश्ता तोड़ दिया कि उन्हें दहेज में मनपसंद कार नहीं मिली।
यह रिश्ता गदरपुर की एक शिक्षित और संस्कारी लड़की से तय हुआ था। कन्या पक्ष ने सगाई के समय लाखों रुपये के उपहार, आभूषण और घरेलू सामान देकर रिश्ते को सम्मानपूर्वक स्वीकारा था। लेकिन समय बीतते-बीतते लड़के वालों की अपेक्षाएं बढ़ती गईं। जब लड़की के माता-पिता उनकी अंतिम मांग — एक महंगी कार — पूरी नहीं कर सके, तो उन्होंने रिश्ता ठुकरा दिया।
कन्या की मां का दर्द छलक पड़ा। आंखों में आंसू लिए उन्होंने कहा, “मेरी बेटी ने कभी कोई फिजूल की ख्वाहिश नहीं की, फिर भी हमने सब कुछ दिया। लेकिन इन लालचियों ने एक गाड़ी के लिए उसकी पूरी दुनिया छीन ली। वह दिनभर गुमसुम बैठी रहती है, ना बोलती है, ना मुस्कुराती है। उसकी आंखों की चमक खत्म हो गई है। हम समाज में किस मुंह से जाएं?”
यह सिर्फ एक रिश्ता नहीं टूटा, बल्कि दहेज की कुप्रथा ने एक परिवार की उम्मीदों, आस्थाओं और इज्जत को रौंद डाला।
समाजशास्त्री डॉ. मीनाक्षी जोशी का कहना है, “दहेज प्रथा समाज में महिलाओं को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाकर रखती है। जब तक यह सोच नहीं बदलेगी कि लड़की ‘बोझ’ है जिसे ‘साथ में सामान’ देकर विदा करना है, तब तक ऐसे हादसे होते रहेंगे।”
इस घटना के बाद कन्या पक्ष अब मानसिक और सामाजिक आघात से जूझ रहा है। बेटी को रिश्तेदारों के तानों और समाज की तिरछी निगाहों का सामना करना पड़ रहा है।