देवभूमि में ऐसा भी अस्पताल है जहां रोगी में ईश्वर के दर्शन कर, लिया जाता है उसका आशीर्वाद।
लोहाघाट। आज के सामाजिक परिवेश में जब मानवीय संवेदनाएं कमजोर पड़ती जा रही है, चिकित्सा पेशे में जिस डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप माना जाता है, वहां उनकी बदलती भावधारा ने इस पेशे के प्रति लोगों की आस्था व विश्वास को कपूर की तरह उड़ा दिया है। इसके बावजूद भी ईश्वर ने इस धरती में ऐसे लोगों को भेजा हुआ है जो वास्तव में देवदूत बनकर गरीबों व बेसहारा लोगों को नया जीवन देकर उनकी दुआएं बटोरकर अपना जीवन धन्य कर रहे हैं। आज यदि किसी से कहें कि उत्तराखंड में एक स्थान ऐसा भी है जहां खाली जेब गया, विभिन्न रोगों से जकड़ा रोगी पूर्ण स्वस्थ होकर लौट आता है तो सहसा किसी को विश्वास नहीं होगा। लोहाघाट से 9 किलोमीटर दूर सघन वनों से गिरे अद्वैत आश्रम मायावती द्वारा संचालित धर्मार्थ ऐसा चिकित्सालय है जहां स्वामी विवेकानंद जी की अवधारणा के अनुरूप नर को नारायण मानकर उनकी निस्वार्थ सेवा कर उन्हें रोग मुक्त कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। दरअसल मायावती में मार्च 1899 में अद्वैत आश्रम की स्थापना करने के बाद यहां के पहले अध्यक्ष स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज ने जब देखा कि क्षेत्र में कहीं कोई अस्पताल नहीं है तथा लोग ठंडी हवा, पानी एवं ठंडी आबोहवा के सहारे जी रहे हैं। तब 1903 में आश्रम के प्रयासों से एक छोटी सी डिस्पेंसरी खोली गई जहां निस्वार्थ भाव से की जाने वाली चिकित्सा सेवा से अस्पताल का इतना प्रचार व विश्वास होता गया कि सैकड़ो मील से रोगी डोली में यहां आने लगे। तब यातायात का कोई साधन नहीं था। धीरे-धीरे अस्पताल का आकार बढ़ाने एवं चिकित्सा सुविधाओं का विस्तार होने लगा तो यहां नेपाल समेत पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, नैनीताल आदि जिलों के भी रोगी आने लगे। आश्रम प्रबंधन द्वारा रोगियों को और बेहतर चिकित्सा सुविधाएं देने के लिए जब देखा कि यहां के सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टर न होने से लोगों की अकाल मृत्यु हो रही है तो देश के कोने-कोने से ऐसे विशेषज्ञ डॉक्टरों के वर्ष भर निशुल्क शिविर लगाए जाने लगे। जिन रोगियों का स्थानीय स्तर पर उपचार करना संभव नहीं होता है, उन रोगियों को अस्पताल के खर्चे से लखनऊ, दिल्ली आदि स्थानों में भेज कर उन्हें आरोग्य प्रदान किया जाता है। ऐसे हजारों लोगों को मौत के मुंह में समाने से बचाकर उन्हें नया जीवन दिया जा रहा है। यहां तक की सर्जरी आदि के लिए लंदन आदि स्थानों से डॉक्टर यहां आते हैं।
वर्ष भर में यहां नेत्र, चर्म, हड्डी, बाल रोग, स्त्रीरोग, कैंसर, दंत रोग, डायबिटीज, थायराइड, उदर रोग, न्यूरोलॉजी, रिम्योटोलॉजी आदि सभी रोगों के ऐसे विशेषज्ञ यहां देवदूत बनकर आते हैं जिनके पास समय ना होते हुए भी इस सुदूर क्षेत्र में आकर केवल और केवल पुण्य अर्जित करने के लिए अपनी सेवाएं देते आ रहे हैं। इस वर्ष सितंबर माह से यहां दूरबीन विधि से ऑपरेशन की सुविधा भी मिलने लगेगी।
बॉक्स-जब मोरबी नरेश का मायावती के अस्पताल में हुआ उपचार।
वर्ष 1935 की बात है कैलाश मानसरोवर यात्रा से लौटते वक्त जब मोरबी के राजा जसवंत सिंह बीमार हो गए तो उस वक्त भी क्षेत्र में कोई दवाखाना नहीं था तो उन्हें मायावती के अस्पताल में भर्ती करया गया।एक सप्ताह बाद पूर्ण स्वस्थ होने पर जब वह जाने लगे तो पता चला कि वह मोरबी के महाराजा जसवंत सिंह है। वह यहां की सेवा से इतने प्रभावित हुए की उन्होंने यहां अस्पताल का बड़ा भवन बनाने की पेशकश की। बाद में दो मंजिला भवन बनाया गया जिससे रोगियों को और राहत मिलने लगी।
फोटो-मोरबी के राजा जसवंत सिंह।
राजा जसवंत सिंह ( मोरबी के राजा )जिनसे नहीं देखी जाती है रोगी की पीड़ा।
धर्मार्थ चिकित्सालय के प्रभारी स्वामी एकदेवानंद महाराज मानवीय गुणों व संवेदनाओं से इतने भरे हुए हैं कि रोगी की कराह सुनते ही उनका मानवता का भाव जाग जाता है की किस प्रकार रोगी को ठीक किया जाए। उसके लिए वह सभी उपाय करते हैं। यदि स्थानीय स्तर पर रोगी का उपचार संभव नहीं है तो उसे अस्पताल के खर्चे पर बाहर भेज कर आरोग्य प्रदान किया जाता है। स्वामी जी द्वारा लगातार अस्पताल को ऊंचाइयों की ओर ले जाने का कार्य किया जा रहा है। अस्पताल में प्रवेश करते ही यहां सेवा की पराकाष्ठा, समर्पण की महक एवं समाज के लिए कुछ करने का जुनून देखकर ही रोगी का आधा रोग स्वयं समाप्त हो जाता है।
फोटो-स्वामी एकदेवानंद जी महाराज।
धर्मार्थ चिकित्सालय का भवन जिसमें सदा सेवा की महक आती है।